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जो पार्टी हित में काम करेगा वही आगे बढ़ेगा, मायावती बोलीं- आड़े नहीं आने दूंगी रिश्ते-नाते

लखनऊ। विरोधी दलों पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को कमजोर करने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि उनके जीते जी पार्टी हित में नाते रिश्ते आड़े नहीं आएंगे। मायावती ने कहा “ मैं अपने जीते-जी अपने व्यक्तिगत तथा भाई-बहिन व रिश्ते-नातों आदि के स्वार्थ में कभी भी पार्टी को कमजोर नहीं पड़ने दूंगी। वैसे भी मेरे भाई-बहिन व अन्य रिश्ते-नाते आदि मेरे लिए केवल बहुजन समाज का ही एक अंग है उसके सिवाय कुछ भी नहीं है। इसके इलावा, पार्टी व मूवमेन्ट के हित में बहुजन समाज के जो भी लोग अपनी पूरी ईमानदारी व निष्ठा से कार्य करते हैं तो उन्हें पार्टी में जरूर आगे बढ़ने का मौका दिया जाएगा और इस मामले में मेरे रिश्ते-नाते आड़े नहीं आएंगे। ”

उन्होंने कहा “ मैं यह भी बताना चाहूंगी कि पिछले कुछ वर्षों से सत्ता व विपक्ष में बैठी सभी जातिवादी, साम्प्रदायिक व पूंजीवादी पार्टियां बसपा के विरुद्ध अन्दर-अन्दर आपस में मिलकर इसे कमजोर करने की पूरी-पूरी कोशिश में लगी हैं, क्योंकि यहाँ जातिवादी पार्टियों को 2007 में यूपी में बसपा का अकेले ही पूर्ण बहुमत के आधार पर सत्ता में आना अभी तक भी उनके गले के नीचे से कतई भी नहीं उतर पा रहा है और तभी से सभी जातिवादी व खासकर दलित-विरोधी पार्टियाँ किस्म-किस्म के हथकण्डे इस्तेमाल करके बसपा को कमजोर व खत्म करने में लगी हैं। ”

बसपा अध्यक्ष ने कहा कि सर्वविदित है कि दलित व अन्य उपेक्षित वर्गों के लोग यूपी में 2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने से पहले जातिवादी उच्च वर्गों के लोगों के सामने ना तो चारपाई पर बैठ सकते थे और ना ही उनकी बराबर की कुर्सी पर भी बैठने की हिम्मत जुटा सकते थे लेकिन 2007 में बसपा की अकेले पूर्ण-बहुमत की सरकार बनने के बाद से अब यह सब काफी कुछ बदल गया है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बीच-बीच में अपनी खुद की गरीबी का तो जरूर उल्लेख करते रहते है, लेकिन इन्होंने दलित व अन्य उपेक्षित वर्गों के लोगों की तरह यहां कभी भी कोई जातीय भेदभाव नहीं झेला है जो यह सब हमारे सन्तों, गुरुओं व महापुरुषों ने झेला है, जिसे अभी भी इनके अनुयायी काफी हद तक झेल रहें है। वक्फ बिल को लेकर उन्होने कहा कि इस समय संसद सत्र चल रहा है व वक्फ बिल पर सत्ता व विपक्ष द्वारा की जा रही राजनीति चिन्ता की बात है। यदि यह मामला समय रहते आम-सहमति से सुलझा लिया जाता तो यह बेहतर होता। केन्द्र सरकार इस मामले में ज़रूर पुनः सोच-विचार करे।

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