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मुस्लिम व ईसाई बने दलितों को आरक्षण नहीं: धर्म बदला, फिर छुआछूत कहां

मुस्लिम व ईसाई बने दलितों को आरक्षण नहीं: धर्म बदला, फिर छुआछूत कहां

7 दिसंबर 2022 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बनने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। साथ ही सरकार ने धर्म बदलने वाले सभी दलितों को रिजर्वेशन की सलाह देने वाले रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट को भी मानने से इनकार कर दिया है।

एक कहानी से पूरे मामले को समझते हैं…

‘यू अकबर अली’ तमिलनाडु के रहने वाले हैं। 26 मई 2008 को अपना धर्म बदलकर वह हिंदू से मुस्लिम बन गए थे। उनके परिवार के बाकी सभी लोग अभी भी हिंदू धर्म को ही मानते हैं।

तमिलनाडु पब्लिक सर्विस कमीशन ने ग्रुप-2 की नौकरी के लिए 10 अगस्त 2018 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके लिए दो चरण में लिखित परीक्षा होनी थी। प्रीलिम्स और मेंस दोनों ही परीक्षाओं में अकबर अली को सफलता मिली, लेकिन फाइनल लिस्ट में उसका नाम नहीं आया।

अकबर अली को पता चला कि उसे बैकवर्ड क्लास मुस्लिम और ईसाई मानकर आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया है। उसे सामान्य वर्ग में रखा गया था। इसकी वजह से कुछ अंक कम रहने के कारण फाइनल लिस्ट में उसका नाम नहीं आया।

इसके बाद वह अपनी शिकायत लेकर मद्रास हाईकोर्ट पहुंच गया। इस मामले में हाईकोर्ट की मदुरै पीठ के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा कि-‘धर्मांतरण के बाद कोई अपनी जाति साथ नहीं रख सकता है।’

साथ ही कोर्ट ने कहा कि धर्म बदलने वालों को आरक्षण का लाभ दिए जाने का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है। ऐसे में आयोग ने जो फैसला लिया है, वह अभी के हालात में सही है।

सवाल 1: केंद्र सरकार ने ये आयोग कब और किस मकसद से बनाया है?

जवाब: 6 अक्टूबर 2022 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया है। इस आयोग में कुल 3 सदस्य हैं…

  • पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन
  • रिटायर IAS अधिकारी रविंदर कुमार जैन
  • UGC सदस्य प्रोफेसर सुषमा यादव

इस आयोग को बनाने के पीछे केंद्र सरकार का मकसद ये है कि अब अपनी रिपोर्ट में ये आयोग सरकार को सुझाव देगा कि धर्मांतरण के बाद दलित मुस्लिम और ईसाईयों को अनुसूचित जाति के तौर पर आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए या नहीं मिलना चाहिए।

सवाल 2: मुस्लिम और ईसाई को आरक्षण का लाभ क्यों नहीं मिल रहा है?

जवाब: सेंटर फॉर पब्लिक इन्ट्रेस्ट लिटिगेशन ने सुप्रीम कोर्ट में ईसाई या मुस्लिम बन चुके दलितों को आरक्षण नहीं दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर किया है। 2004 से ये मामला कोर्ट में है।

संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के आदेश पर 1950 में हिंदुओं में अछूत माने जाने वाले कई जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिला था, जिन्हें आज दलित कहते हैं। 1956 में राष्ट्रपति के इस आदेश में संशोधन करके इसमें सिख दलितों को भी जोड़ दिया गया।

1990 में वीपी सिंह की सरकार ने एक बार फिर से इस आदेश को बदलकर बौद्ध को इसमें शामिल कर लिया। इस सरकारी आदेश में लिखा है कि हिंदू, सिख और बौद्ध को छोड़कर दूसरे धर्म को अपने वालों को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।

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यही वो सरकारी आदेश है जिसकी वजह से देश में धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बनने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं मिल पाता है। इसकी वजह से वे आरक्षण का लाभ भी नहीं ले पाते हैं।

सवाल 3:धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बनने वालों को रिजर्वेशन देने पर सरकार का क्या मानना है?

जवाब: सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दलित मुसलमान और ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं देने को लेकर 3 तर्क दिए हैं…

राष्ट्रपति आदेश 1950, 1955 और 1990 मुस्लिम और ईसाई को अनुसूचित जाति मानकर आरक्षण का लाभ देने का इजाजत नहीं देता है।

अनुच्छेद 25 के खंड 2(B) में हिंदू शब्द में सिख, जैन और बौद्ध भी शामिल हैं। इसलिए इन 3 धर्मों के अलावा किसी और धर्म के लोगों को अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किया जा सकता है।

मुस्लिम और ईसाईयों में जाति भेद और छुआछूत नहीं है, इसलिए इनको अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किया जा सकता है।
हालांकि, सरकार के इन तर्कों के विरोध करने वाले अनुच्छेद 25 के खंड 2(B) में संशोधन करके मुस्लिम और ईसाई धर्म को भी इसमें शामिल करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि हिंदू शब्द में सिख, जैन और बौद्ध शामिल थे तो…

1955 में संशोधन करके सिख और 1990 में संशोधन करके बौद्ध को क्यों शामिल किया गया?
1990 के संशोधन तक भारत में बौद्ध धर्म के लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा क्यों नहीं दिया गया?
ऐसा है तो जैन को अभी भी अनुसूचित जाति का दर्जा क्यों नहीं मिला है?

सवाल 4: सरकार ने जिस रंगनाथ मिश्रा कमेटी का विरोध किया है, उसका क्या कहना था?

जवाब: अक्टूबर 2004 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा के नेतृत्व में सरकार ने एक आयोग बनाया। इस आयोग को देश में भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों से संबंधित विभिन्न मुद्दों के जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि-

‘1950 में राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 341 के तहत अध्यादेश जारी कर पैरा 3 में दलित मुस्लिमों और ईसाइयों को अनसूचित जाति के दायरे से बाहर किया था, वह असंवैधानिक था। वो खत्म होना चाहिए। इसके लिए किसी संविधान संशोधन की जरूरत नहीं है। ये काम एग्जीक्यूटिव ऑर्डर से भी हो सकता है।’

सवाल 5: कहीं ये वोट बैंक की राजनीति

जवाब: ऑल इंडितो नहीं है?या पसमांदा मुस्लिम महाज के अध्यक्ष और पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मुस्लिमों में जाति भेद है। इस धर्म में भी दलितों के साथ भेदभाव होता है। वहीं, रंगनाथ मिश्रा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दलित मुस्लिमों के लिए भी रिजर्वेशन होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जब ये मामला कोर्ट में पहुंचा तो सरकार को लगा कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम और ईसाई दलितों के पक्ष में फैसला सुना सकती है। ऐसे में केंद्र ने अलग से एक आयोग बना दिया और कहा कि इस मामले में ये आयोग ही अब आगे फैसला करेगा।

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सोचने वाली बात ये है कि एक तरफ सरकार ने इसकी जांच के लिए आयोग बनाया है और दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने ये भी कहा है कि मुस्लिम और ईसाई दलितों को कानूनी तौर पर आरक्षण नहीं मिल सकता है।

ऐसे में लगता है कि आयोग बस बहाना लग रहा है और केंद्र सरकार की मंशा मुस्लिम और ईसाई दलितों को उनका हक दिलाने के पक्ष में नहीं है। इसके आगे अली अनवर कहते हैं कि लगता है कि ये सब सरकार के वोट बैंक की राजनीति है।

सवाल 6: मुस्लिम और ईसाई धर्म में शामिल होने वालों को रिजर्वेशन नहीं देने का तर्क कितना सही है?

जवाब: दिल्ली यूनिवर्सिटी की लॉ प्रोफेसर सीमा सिंह ने कहा कि- कंवर्टेड मुस्लिम और ईसाईयों को रिजर्वेशन नहीं देने का फैसला बिल्कुल सही है। आजादी के बाद सबसे ज्यादा हिंदू दलितों ने धर्म बदला है। ऐसे में इन वजहों से उन्हें रिजर्वेशन नहीं दिया जाना चाहिए…

इस्लाम और ईसाई धर्म में जातिगत भेद भाव नहीं है। इसी वजह से हिंदू धर्म के दलित मुस्लिम और ईसाई धर्म में शामिल होते हैं। वहां जातिगत भेद भाव वैसा नहीं है, जैसा हिंदू धर्म में है और सुप्रीम कोर्ट ने भी अलग-अलग फैसलों में इस बात को माना है।

ऐसे में धर्म बदलने वाले दलितों को रिजर्वेशन मिलना आरक्षण की मूल भावना के विरुद्ध है, जो की जातिगत भेद भाव पर आधारित है। इसलिए ये लाभ धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बनने वाले दलितों को नहीं मिलना चाहिए।

संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान खोलने का अधिकार है। धर्म बदलने वाले दलितों को इन शिक्षण संस्थानों में शिक्षा मिलती है जो की उन्हें धर्म नहीं बदलने वाले दलितों से कहीं अधिक सामर्थ्यवान बनाती है।

मुस्लिम और ईसाई धर्म से जुड़े कई सरकारी और गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में धर्म बदलने वालों को विशेष लाभ भी दिया जाता है।

ऐसे में उन्हें रिजर्वेशन देना धर्म नहीं बदलने वाले दलितों के साथ भेदभाव करना है जो की संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है और मतांतरित दलितों को गैर मतांतरित दलितों पर दोहरा लाभ देने जैसा है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन भी है।

अगर ऐसा हुआ तो हिंदू दलितों में ये मैसेज जाएगा कि धर्म बदलने से दोहरा लाभ मिल रहा है। इससे धर्मांतरण को बढ़ावा मिलेगा जो की संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर हमला होगा और इससे संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन होगा।

ये राष्ट्र की सांस्कृतिक और भौगोलिक अखंडता के लिए भी बड़ी चुनौती होगी और लंबे समय में एक बार फिर से भारत को अलगाववाद की उसी राह पर ले जाएगी, जिस पर चल कर पाकिस्तान बना था।

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