
यह महत्वपूर्ण पहल, जिसको मिशन अमृत (एक्यूट मायओकारडियल रीपरफ्यूज़न इन टाईम) भी कहा जाता है, ऐस्टी – सैगमैंट ऐलीवेटिड मायओकारडियल इन्फार्कशन ( स्टैमी), जोकि दिल के दौरे की सबसे गंभीर किस्म है, का मकसद मरीजों को उसी समय तुरंत इलाज मुहैया करवाना है।
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डा. बलबीर सिंह, जो स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव कुमार राहुल और दयानन्द मैडीकल कालेज और अस्पताल के कार्डियालोजी विभाग के प्रमुख डा. बिशव मोहन के साथ, यहाँ प्रोजैक्ट की शुरुआत करने पहुँचे थे, ने कहा कि टैनैकटेपलेस टीका, जिसकी कीमत लगभग 30,000 रुपए है, इस प्रोजैक्ट के अंतर्गत मुफ़्त उपलब्ध करवाया जा रहा है। यह टीका दिल में ख़ून के थक्कों को क्षय/क्षीण करने में मदद करता है।
पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर सफल होने के बाद यह प्रोजैक्ट राज्य भर में शुरू किया जा रहा है, पहले यह सिर्फ़ दो जिलों लुधियाना और पटियाला में लागू किया गया था और बाद में नौ और जिलों में लागू कर दिया गया था। शुरुआती पड़ाव में लगभग 14,000 छाती में दर्द वाले मरीजों को दाखि़ल किया गया और 1305 स्टैमी मरीजों की पहचान की गई, जिनमें से 583 मरीजों को ज़िला स्वास्थ्य सहूलतें और थरोमोबोलाईसिस का इलाज मुहैया करवा कर उनकी जान बचायी गई।
प्रोजैक्ट की अहमीयत और आवश्यक्ता पर बोलते हुए डा. बलबीर सिंह ने कहा कि आम तौर पर देखा गया है कि पंजाब में छाती के दर्द से पीड़ित मरीजों को काफ़ी देरी का सामना करना पड़ता है, अक्सर लक्षण शुरू होने से लगभग 2-3 घंटे बाद ही लोग मूलभूत डाक्टरी इलाज तक पहुँच करते हैं। बहुत से स्थानीय अस्पतालों और नर्सिंग होमों में स्टैमी के लिए तुरंत निदान और इलाज सामर्थ्य की कमी होती है, जिसके नतीजे के तौर पर मरीज़ को आगे ट्रांसफर करने में और देरी हो जाती है। जिस कारण अक्सर मरीज़ महत्वपूर्ण थैरप्यूटिक विंडो पीरियड या गोल्डन ऑवर के दौरान थरोमबोलाईसिस (ख़ून प्रवाह को सुचारू करने वाली थैरेपी) से वंचित रह जाते हैं।
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स्टैमी प्रोजैक्ट के बारे और विवरण सांझे करते हुए हुये स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि यह प्रोजैक्ट एक नवीनताकारी हब और सपोक माडल के द्वारा इन चुनौतियों को सीधे तौर पर हल करता है। ज़िला और सब – डिवीजनल अस्पताल सपोक सैंटरों के तौर पर काम करेंगे, जो स्टैमी मरीजों के शुरुआती निदान और प्रबंधन को संभालने के लिए लैस हैं। यह सपोक सैंटर माहिर हब अस्पतालों – जिसमें मौजूदा दयानन्द मैडीकल कालेज और अस्पताल लुधियाना और जीऐमसीऐच-32 चंडीगढ़ और चार नये हब जिनमें पटियाला, फरीदकोट, अमृतसर और एमज़ बठिंडा के सरकारी मैडीकल कालेज शामिल हैं, के साथ जुड़े हैं।
उन्होंने बताया कि सपोक सैंटर पहुँचने पर स्टैमी मरीजों को टेली- ईसीजी आधारित कंसलटेशन के द्वारा नज़दीकी हब के माहिरों की सीधे नेतृत्व अधीन थ्रोमबोलाईसिस समेत प्राथमिक सहायता दी जायेगी। ज़िला स्वास्थ्य सहूलतों पर थ्रोमबोलाईसिस दवा, इंजेक्शन टैनैकटेपलेस 40 मिलीग्राम (टीएनके 40 मिलीग्राम) मुफ़्त प्रदान किया जा रहा है, जिससे जीवन-रक्षक इलाज के लिए वित्तीय रुकावटों का समाधान किया जा सके। उन्होंने आगे कहा ठीक होने के उपरांत मरीजों को माहिरों की सलाह और व्यापक इलाज के लिए हब केन्द्रों में भेजा जायेगा।
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इसको पंजाब में स्वास्थ्य देखभाल के लिए एक यादगारी दिन करार देते हुये डा. बलबीर सिंह ने कहा कि पंजाब स्टैमी प्रोजैक्ट, एस. ए. एस. नगर मोहाली और लुधियाना में हमारे आईसीएमआर सफलता पर आधारित है, जो हर नागरिक, चाहे वह किसी भी स्थान पर हों, के लिए दिल के दौरे के दौरान समय पर और प्रभावशाली देखभाल को यकीनी बनाने के लिए राज्य सरकार की वचनबद्धता का प्रमाण है। थ्रोमबोलाईसिस को सीधे ज़िला स्तर पर लाकर, राज्य सरकार समय पर इलाज मुहैया करवा रही है और मरीजों के बचाव और रिकवरी की संभावनाओं को बढ़ाया जा रहा है।
इस प्रोजैक्ट की सफलता को यकीनी बनाने के लिए स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि सभी 23 जिलों के मैडीकल स्पेशलिस्ट, एमरजैंसी मैडीकल अफ़सर (ईएमओज़) और स्टाफ नर्साें सहित 700 से अधिक स्टाफ सदस्यों ने माहिर कार्डियोलोजिस्ट डा. बिशव मोहन के नेतृत्व अधीन डीएमसीएच लुधियाना में क्षमता-निर्माण प्रशिक्षण प्रोग्रामों में प्रशिक्षण लिया। अस्पतालों के सभी एमरजैंसी कमरों को स्टैमी मामलों के प्रबंधन के लिए ईसीजी और डीफिब्रिलेटरों के साथ लैस किया गया है।
डीएमसीएच लुधियाना के प्रोफ़ैसर और कार्डियोलोजी के प्रमुख डा. बिशव मोहन ने कहा कि लोगों को दिल के दौरे के लक्षणों के बारे संवेदनशील होने की ज़रूरत है, जिनको आम तौर पर लोग गैस्टरोइंटेस्टाईनल बीमारी समझ कर अनदेखा कर देते हैं। उन्होंने आगे कहा इसकेमिक दिल की बीमारी भारत में मौत का प्रमुख कारण है। यह सहयोगी पहुँच यह यकीनी बनाती है कि मरीजों को समय पर बढ़िया इलाज मिले, जिससे उनके बचने की संभावनाओं में सुधार हो।
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