
सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के बार एसोसिएशन में हाशिए पर पड़े अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को कोटा देने की मांग को तो वाजिब और गंभीर बताया है, लेकिन साथ में यह भी कहा है कि वह ऐसा कोई आदेश पारित नहीं कर सकते, जिससे कि समाज में जाति और धर्म के नाम पर बंटवारा हो। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कर्नाटक के कुछ वकीलों की इस मांग से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने साथ ही कहा कि बार निकायों में हाशिए पर पड़े समुदायों के वकीलों के लिए आरक्षण की मांग करने वाली याचिका गंभीर है। उन्होंने यह भी कहा कि बार एसोसिएशन में सामाजिक विविधता भी अहम है और जरूरी है, लेकिन कोर्ट इस तथ्य से अवगत है कि वह ऐसे निकायों को जाति और धर्म के आधार पर विभाजित राजनीतिक मंच बनने की अनुमति नहीं दे सकता।
जस्टिस कांत की अगवाई वाली पीठ ने कहा कि यह एक मुद्दा गंभीर है और हमें इससे निपटना होगा.. (लेकिन) हम नहीं चाहते कि जाति और धर्म के आधार पर बार एसोसिएशन विभाजित हो। हम ऐसा नहीं चाहते और हम इसे राजनीतिक मंच बनने नहीं दे सकते। दरअसल, अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग अधिवक्ता संघ और कर्नाटक एससी/एसटी पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक अधिवक्ता महासंघ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दयार कर बंगलुरु के एडवोकेट एसोसिएशन के शासी निकाय में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/ एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणियों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण की मांग की थी। कोर्ट इसी याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
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