उत्तर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर होने का गौरव तालेश्वर मंदिर को प्राप्त है

उत्तर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर होने का गौरव तालेश्वर मंदिर को प्राप्त है यहां पर प्राचीन राजा का महल के बिखरे हुए अवशेष ईंट के भट्टे चक्रराकार शिखर का पत्थर जो भी है उन्हें संरक्षित करना जरूरी है और तालेश्वर का सीधा संबंध गढ़वाल क्षेत्र दुधाटोली मैं स्थित बिंदेश्वर मंदिर से है! उस मंदिर का पुनर्निर्माण नागर शैली में कर लिया गया है स्वर्गीय तारा दत्त शास्त्री देघाट इंटर कॉलेज में संस्कृत के प्रवक्ता थे उन्होंने हमें भी पढ़ाया और मंदिर का महत्व बताते हुए कहा वहां पर रावण ने भी बिंद्रेश्वर में तपस्या करी अर्थात वहां पर साधना केंद्र त्रेता य युग से भी पहले का है,
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इसी तरह तालेश्वर का मंदिर प्राचीन स्वरूप में नागर शैली में बन जाए तो अति उत्तम होगा ,इसका प्रस्ताव कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत जी के सामने रखना होगा वह इन चीजों में काफी कुछ भी रखते हैं,
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अंग्रेजों के शासनकाल में 1915 में देघाट के निकट तालेश्वर मंदिर परिसर में छठी शताब्दी के दो दुर्लभ ताम्रपत्र मिले थे। यह दोनों दुर्लभ ताम्रपत्र आजादी से पहले से ही लखनऊ संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहे हैं, जबकि अल्मोड़ा संग्रहालय में इनकी रिप्लिकाएं हैं। उत्तराखंड बन जाने के बाद भी इन एतिहासिक ताम्रपत्रों को अल्मोड़ा संग्रहालय लाने का प्रयास नहीं हुआ है। यह ताम्रपत्र द्विज बर्मन और द्विति बर्मन के शासनकाल के हैं। ब्राह्मी लिपि में लिखे गए इन ताम्रपत्रों का हिंदी में अनुवाद भी हो चुका है।
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अल्मोड़ा और आसपास के इलाके ऐतिहासिक रूप से काफी महत्वपूर्ण रहे हैं। अल्मोड़ा करीब साढ़े तीन सौ साल तक चंद शासकों की राजधानी रही। अल्मोड़ा से लगी कत्यूर घाटी से कत्यूरी राजाओं का इतिहास जुड़ा रहा है। कुमाऊं में जागेश्वर, बैजनाथ, कटारमल, द्वाराहाट समेत सभी महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर और शिल्प कत्यूरी काल का ही माना जाता है। कत्यूरी शासन का काल सातवीं से 14वीं शताब्दी तक का माना जाता है, जबकि उससे पहले कुमाऊं अंचल में शासन की क्या व्यवस्था थी इसका कोई इतिहास मौजूद नहीं है, लेकिन समय-समय पर मिले दुर्लभ दस्तावेजों और ताम्रपत्रों से पता चलता है कि इससे पहले भी कुमाऊं में अलग-अलग वंशजों का शासन रहा।
अंग्रेजों के शासनकाल में 1915 में देघाट के निकट तालेश्वर मंदिर परिसर में छठी शताब्दी के दो दुर्लभ ताम्रपत्र मिले थे। तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर ने इन ताम्रपत्रों को लखनऊ में स्थित राज्य संग्रहालय में भेज दिया था। यह दोनों ताम्रपत्र ब्रह्म लिपि में लिखे गए हैं। बाद में इनका हिंदी में अनुवाद भी कर दिया गया था। जिससे यह पता लगा कि दोनों ताम्रपत्र छठी शताब्दी के हैं। यह ताम्र पत्र उस दौर में शासन करने वाले पौरव वंशी और द्विज बर्मन और द्विति बर्मन के शासन काल के हैं। इनमें स्थानीय कई गांवों का भी उल्लेख होना बताया गया है। मंदिर से संबंधित पूरे अभिलेख लखनऊ में है
खुदाई में एक और ताम्रपत्र मिला है जो किसी गोरखा सैनिक की पत्नी द्वारा जारी किया गया है
सन् 1867 (+58 )= और संवत् 1925 लिखा है ताम्र पत्रों को खोजने में श्री पुरुषोत्तम शर्मा जी के पिताजी स्व सदानंद खकरियाल का बहुत बड़ा योगदान रहा,
तालेश्वर स्थान से बिंदेश्वर महादेव जहां से विनोद नदी का उद्गम होता है, वह स्थान जहां से दिखता है, वहीं पर ब्रह्मढुग्गी है जो काफी ऊंचाई पर है ,वहां से खड़े होने पर काशीपुर का भाबर क्षेत्र तथा संपूर्ण कुमाऊं दिखता है ब्रह्मपुर के राजा लोग तालेश्वर से अपना संदेश जो उसे समय की गुप्त संदेश होते थे एक प्रकार के साांकेतिक उसे ब्रह्मढुग्गी में भेजते थे ,वहां से संपूर्ण कुमाऊ भाभर को संदेश रात्रि मैं जब आसमान साफ हो उसे समय भेजते थे
तालेश्वर मंदिर में बिंदेश्वर का ही पानी अंडर ग्राउंड होते हुए आता है और वहां पर एक तालाब बना हुआ है इसके पानी से ही जलाभिषेक होता है, परिपूर्ण वात्सायन मनराल जी ने भी इस संबंध में निम्न जानकारी मुझे दी
यह स्थान महत्वपूर्ण है
1- राजा सारंगदेव ने ब्रह्मपुर तालेश्वर का क्षेत्रपाल अपने एक बेटे को दिया था
2- ब्रह्मपुर का वर्णन चीनी ह्वांगसन ने भी किया है
3- यहां से ही पुराना बद्रीनाथ केदारनाथ जाने का रास्ता था
4- 3गोरखा रेजिमेंट का सेन्टर पहले देहरादून में था हो सकता है नेपाल से देहरादून आने जाने का मुख्य मार्ग हो,
5- गोरखा रेजिमेंट ही उस समय के अंग्रेज शासकों व पर्यटकों को इसी रास्ते से हिमालय दर्शन के लिए ले जाते हों जिस कारण उन सुबेदारों ने यहां जमीन खरीदकर स्वयं थर्मशाला बनाई हो साथ ही उन्होने यह भी लिखा कि कोई यहां हमेशा नहीं रहे
उपरोक्त से पुष्टि होती है कि पूर्व राजाओं व कत्यूर शासन काल का ब्रह्मपुर यहीं है और यह ही मुख्य मार्ग था, इस मार्ग से जाने पर बड़ी नदियों को पार करने का खतरा कम हो रास्ता आसान व सुगम हो खाने पीने व रहने के सामान आसानी से मिलता हो..
निम्न चित्र में जो पानी का धारा दिख रहा है वह विनोद नदी का उद्गम स्थल है
तालेश्वर मंदिर एवं उसका शिलालेख और तालेश्वर मंदिर संबंधी ताम्रपत्र तथा मंदिर जो वर्तमान में है,
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