महामहिमों की नियुक्ति के जरिये राजनीति के भव्य लक्ष्य को हासिल करने

केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के जरिए वैश्विक स्तर पर यूपी की ब्रांडिंग के बीच किसी न किसी रूप में राज्य से जुड़े चार लोगों को राज्यपाल बनाकर बड़ा सियासी दांव चला है। इसे सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में पिछड़ा-अगड़ा व जनजातीय समाज के साथ मुस्लिमों को साधने की नई कवायद को आगे बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। सर्वाधिक जोर पूर्वांचल साधने पर नजर आ रहा है।
केंद्र सरकार ने रविवार को 13 राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति की। इनमें कुछ इधर से उधर किए गए हैं। इस दूरगामी सियासी असर वाली नियुक्तियों में पूर्वांचल से पूर्व केंद्रीय मंत्री व ब्राह्मण चेहरे के रूप में जाने जाने वाले शिव प्रताप शुक्ला हैं, तो पूर्वांचल के वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले चुनाव संयोजक रहे अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले एमएलसी लक्ष्मण प्रसाद आचार्य भी शामिल हैं।
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अयोध्या के राम मंदिर संबंधी फैसला देने वाली सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ में शामिल रहे सेवानिवृत्त न्यायाधीश अब्दुल नजीर हैं तो पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले बिहार के राज्यपाल फागू चौहान का ज्यादा सहज जिम्मेदारी वाले प्रदेश मणिपुर में तबादला शामिल है।
राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि यूपी-बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। राज्य में बसपा एक बार फिर सक्रिय होने की कोशिश कर रही है। भाजपा मुसलमानों को जोड़ने के लिए पहली बार ठोस प्रयास करती नजर आ रही है। ऐसे में तीसरी बार मोदी सरकार को सत्ता में लाने के महालक्ष्य में यूपी की खास भूमिका के लिहाज से ये नियुक्तियां बेहद अहम हैं।
शिवप्रताप शुक्ला: पूर्वांचल में ब्राह्मण चेहरे का फिर सम्मान
यूपी भाजपा के प्रमुख नेताओं में शामिल शिव प्रताप शुक्ला पूर्वांचल में भाजपा के ब्राह्मण चेहरा माने जाते रहे हैं। यूपी की सियासत में शुक्ला की खास अहमियत रही है। एक समय मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व शुक्ला के आपसी रिश्ते अच्छे नहीं रह गए थे। एक वक्त ऐसा भी आया जब शुक्ला की सियासत खत्म मानी जाने लगी थी, लेकिन वह भाजपा में पूरी सक्रियता से जुड़े रहे। नतीजा ये हुआ कि , 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद शुक्ला की सियासत फिर चमकी।
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पीएम मोदी ने न सिर्फ उन्हें राज्यसभा सदस्य बनवाया बल्कि अपने मंत्रिमंडल में वित्त राज्यमंत्री जैसी अहम जिम्मेदारी भी दी। वह राज्यसभा में भाजपा केचीफ व्हिप भी रहे। पिछले वर्ष जुलाई में उनका राज्यसभा कार्यकाल खत्म हुआ था, तभी से उनकी नई जिम्मेदारी की अटकलें थीं। मोदी ने शुक्ला को हिमाचल जैसे महत्वपूर्ण राज्य की जिम्मेदारी देकर उनका कद एक बार फिर बढ़ा दिया है। यूपी सरकार में ब्रजेश पाठक को डिप्टी चीफ मिनिस्टर बनाने के बाद शुक्ला की नई जिम्मेदारी को लोकसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण समाज के लिए अच्छे संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।
फागू चौहान: बिहार में सियासी दांवपेंच की जगह मेघालय में आराम
फागू चौहान पिछड़ा वर्ग से आते हैं। उन्हें जब बिहार का राज्यपाल बनाया गया था, तब भाजपा-जदयू गठबंधन सरकार थी। उन्हें जानने वाले बताते हैं कि चौहान सहज और सरल हैं। ज्यादा सियासी दावंपेच उन्हें नहीं भाता। अब बिहार का सियासी समीकरण बदल चुका है। जदयू-भाजपा की जगह जदयू-राजद की सरकार है।
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लिहाजा, उन्हें भाजपा शासन वाले मेघालय राज्य में शिफ्ट कर दिया गया है। वह वहां आराम से अपनी जिम्मेदारी निभा सकेंगे। बिहार का राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को बनाया गया है। वह हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल थे। आर्लेकर न सिर्फ गोवा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं, बल्कि गोवा विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्हें संसदीय मामलों का पूरा दांवपेंच आता है।
लक्ष्मण प्रसाद आचार्य: दलितों-जनजातियों को संदेश
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रहने वाले लक्ष्मण प्रसाद आचार्य भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष होने के साथ ही यूपी विधान परिषद के सदस्य भी हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी लोगों में गिना जाता है। आरएसएस द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षक रहे लक्ष्मण आचार्य राम मंदिर आंदोलन में भागीदार रहे हैं। आचार्य का जन्म आदिवासी खरवार जाति के परिवार में हुआ। यूपी में खरवार, मुसहर, गोंड, बुक्सा, चेरो, बैंगा आदिवासी जातियां है, इनकी आबादी 20 लाख के करीब है। यूपी के सोनभद्र, चंदौली, गोरखपुर, बलिया सहित 12 जिलों में आदिवासी जातियां है।
पूर्वांचल में आदिवासी-दलित समाज के बीच भाजपा की पैठ बनाने में इनकी अच्छी भूमिका मानी जाती है। लक्ष्मण आदिवासी बहुल सोनभद्र के मूल निवासी हैं। जानकारों का मानना है कि प्रदेश में रामचरित मानस की चौपाई के जरिये विपक्ष दलितों और पिछड़ों के बीच भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहा है। केंद्र सरकार ने आचार्य की नियुक्ति के जरिए इन वर्गों को संदेश देने की कोशिश की है, कि भाजपा के लिए पिछड़ों और दलितों का महत्व सर्वोपरि है।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर: मुस्लिमों को साधने के प्रयासों को बल
सुप्रीमकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का नया राज्यपाल बनाया गया है। वे इसी साल सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे। अब्दुल नजीर का सीधे तौर पर यूपी से कोई ताल्लुक नहीं है। लेकिन, अयोध्या के राम मंदिर से जुड़े वाद में फैसला देने वाली पीठ में शामिल होने की वजह से उनका यूपी से ऐतिहासिक ताल्लुक जुड़ गया। भाजपा सरकार में वर्तमान में कार्यरत मुस्लिम राज्यपालों में वह दूसरे हैं। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान यूपी से हैं।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस समय पसमांदा व उदारपंथी मुस्लिमों को जोड़ने के लिए विशेष प्रयास हो रहा है। पसंमांदा सम्मेलन के बाद अल्पसंख्यक युवाओं के रोजगार के लिए अलग से कैंप लगाया जा रहा है। सूफी सम्मेलन की योजना है। जस्टिस अब्दुल नजीर को राज्यपाल के रूप में नियुक्ति एक सम्मान है। इससे मुस्लिम समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ना चाहिए।
पूर्वांचल पर पूरा जोर: यूपी से अब 7 राज्यपाल या उपराज्यपाल, पूर्वांचल से छह
देश में इस समय से सीधे तौर पर यूपी से ताल्लुक रखने वाले राज्यपालों/ लेफ्टीनेंट गर्वनर की संख्या बढ़कर सात पहुंच गई है। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र गाजीपुर, अब मेघालय के राज्यपाल फागू चौहान मऊ, हिमाचल प्रदेश के नवनियुक्त राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला गोरखपुर और सिक्किम के नवनियुक्त राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य वाराणसी से ताल्लुक रखते हैं।
इसी तरह जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा गाजीपुर और अब केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के उप राज्यपाल बिग्रेडियर (सेवानिवृत्त) डा. बीडी मिश्रा मूल रूप से पूर्वांचल के ही भदोही के रहने वाले हैं। इन सात में पांच सीधे तौर पर पीएम के संसदीय क्षेत्र के पड़ोस के जिलों से हैं। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान बहराइच के सांसद रहे हैं।
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