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भाजपा इस बार शिवराज की सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे, कांग्रेस भी पीछे नहीं

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों में भले ही फिलहाल देर हो, दोनों प्रमुख पार्टियों ने अपनी-अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। शिवराज सोशल इंजीनियरिंग को मजबूती देने में लगे हैं। पार्टी भी इसमें कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर में हो जाएंगे। 2018 में भी अक्टूबर के पहले हफ्ते में चुनाव की तारीखों की घोषणा हो गई थी। तब पिछड़ी जातियों के पक्ष में एक बयान की वजह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विरोध का सामना करना पड़ा था। अगड़े वर्ग के कर्मचारियों के आंदोलन से निकली पार्टी ने भी भाजपा और शिवराज के खिलाफ माहौल बनाया था।

अब की बार न तो वह विरोधी दिख रहे हैं और न ही अगड़ों में किसी तरह का रोष दिख रहा है। शिवराज अपनी सोशल इंजीनियरिंग के बूते वह सब कर रहे हैं, जो सभी वर्गों को साधने के लिए आवश्यक है।

बजट में शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं के लिए लाड़ली बहना योजना लाकर एक बड़े वोटर वर्ग को अपनी ओर कर लिया है। यूथ पंचायत आयोजित की तो उसमें यूथ पॉलिसी घोषित की। उसमें भी सरकार ने मुख्यमंत्री कौशल कमाई योजना के जरिये युवाओं को प्रशिक्षण के दौरान आठ हजार रुपये देने की घोषणा की।

आदिवासी वर्ग को साधने के लिए 89 ब्लॉक्स में पेसा कानून के नियम लागू किए गए हैं। इतना ही नहीं, आदिवासी युवाओं के लिए अलग से उद्यमिता योजनाएं शुरू की गई हैं। आदिवासी वोटबैंक 80 सीटों पर सीधे दखल रखता है और इस वर्ग को अपने साथ रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक के कार्यक्रम मध्यप्रदेश में आयोजित किए गए हैं।

महिलाओं, युवाओं और आदिवासियों के साथ-साथ शिवराज का फोकस अलग-अलग पॉकेट्स वाले वोटबैंक पर भी है। तभी तो सकल तेली साहू राठौर समाज महासंगठन के कार्यक्रम में तेल घानी बोर्ड के गठन और एक प्रतिनिधि को राज्यमंत्री का दर्जा देने की घोषणा कर दी।

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राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार प्रभु पटैरिया का कहना है कि उत्तरप्रदेश में भाजपा को बड़ी जीत मिली थी छोटे-छोटे तबकों को अपने पाले में लाकर। मध्यप्रदेश में भी पार्टी इसी रणनीति पर काम कर रही है। आदिवासी, अनुसूचित जाति के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के उपायों के साथ ओबीसी और सामान्य वर्ग के विभिन्न जाति समूहों को संतुष्ट करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकारी योजनाएं और कार्यक्रम बना रहे हैं। बीजेपी भी लगातार इन वर्गों में अपनी पैठ बढ़ा रही है। हाल ही में प्रीतम लोधी की भाजपा में वापसी भी इसी बात का संकेत है। वहीं, कांग्रेस की कोशिश भी भाजपा के नाराज नेताओं को अपने पाले में लाने पर है।

विकास यात्राओं के जरिये भी जनता के बीच पहुंची भाजपा
भले ही विकास यात्रा का कार्यक्रम सरकारी हो, इसका फायदा भाजपा को जरूर मिलेगा। सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर तक पहुंचाने और हितग्राहियों की पहचान करने की कोशिश इसके जरिये की गई है। लिस्ट तैयार है। इसके आधार पर भाजपा अपनी पन्ना समितियों को अंतिम रूप देगी। पन्ना प्रमुख और पन्ना समितियों का डिजिटल स्वरूप ही भाजपा का वह हथियार है, जिसके बल पर पार्टी ने गुजरात में उम्मीद से बढ़कर सफलता हासिल की है।

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कांग्रेस भी बना रही है भाजपा को घेरने की रणनीति
मध्यप्रदेश कांग्रेस भी चुनाव में भाजपा को उसकी ही रणनीति से घेरने की कोशिश में है। कमलनाथ से लेकर पार्टी के अन्य नेता सॉफ्ट हिंदुत्व को आगे बढ़ा रहे हैं। राजस्थान में हुए चिंतन शिविर और पार्टी के वरिष्ठ नेता एके एंटनी की समिति ने जो विश्लेषण किया था, उसमें भी इसी बात पर जोर था कि पार्टी को हिंदू-विरोधी छवि से दूर रहना होगा। साथ ही सभी वर्गों की हितैषी बनकर उभरना होगा। सारा खेल धारणाओं का है और इसमें कोताही बरदाश्त नहीं होगी।

इसी वजह से कमलनाथ को पार्टी ने हनुमान भक्त के तौर पर पेश किया। नवरात्रि में कन्यापूजन और हवन करते कमलनाथ की तस्वीरें आई। इतना ही नहीं कमलनाथ तो कह ही रहे हैं कि भाजपा की लाड़ली बहना योजना में एक हजार के बजाय 1,500 रुपये देंगे। यानी योजना का विरोध नहीं है बल्कि उसे आगे ले जाने की बात कांग्रेस कर रही है। इसी तरह गैस सिलेंडर 500 रुपये में देने की घोषणा भी अहम है। पुरानी पेंशन योजना लागू करने का ऐलान कर कर्मचारियों को साधा गया है। चुनाव की तारीख से पहले कांग्रेस की कोशिश है कि भाजपा की नीतियों को जनविरोधी बताकर बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दों पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को साधा जाए।

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