
जलवायु परिवर्तन से खाद्य सुरक्षा को बड़ा झटका लग सकता है। तापमान में वृद्धि, अनियमित वर्षा, सूखा, बाढ़ और हीटवेव जैसी मौसमी घटनाओं का सीधा असर खेती पर पड़ सकता है, जिससे 2050 तक प्रमुख खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में भारी कमी आ सकती है।
इंडियन नेटवर्क फार क्लाइमेट चेंज असेसमेंट (आइएनसीसीए) की रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे ज्यादा कमी गेहूं एवं धान जैसी प्रमुख फसलों की उपज में हो सकती है। गेहूं में 6 से 25 प्रतिशत और धान में 3 से 15 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।
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खाद्यान्न उत्पादन में 10 से 30 प्रतिशत कमी की आशंका
ऐसा हाल सिंचित क्षेत्रों का होगा। असिंचित क्षेत्रों में खाद्यान्न उत्पादन में 10 से 30 प्रतिशत कमी की आशंका है। आइएनसीसीए की रिपोर्ट के बाद फेडरेशन ऑफ आल इंडिया फार्मर एसोसिएशन (फैफा) ने जलवायु परिवर्तन से संभावित क्षति पर चिंता जताते हुए किसानों की आय बढ़ाने वाली मौसम अनुकूल कृषि पर जोर दिया है।
नई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के प्रयास तेज हों
संगठन ने विश्व पर्यावरण दिवस पर दिल्ली में सेमिनार का आयोजन कर एक विशेष रिपोर्ट जारी की, जिसमें खेती की चुनौतियों से निपटने के लिए नई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के प्रयासों को रेखांकित किया गया।विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीक के जरिए ही जलवायु संकट से किसानों को बचाया जा सकता है। अक्षय ऊर्जा, सूक्ष्म सिंचाई एवं जैविक खेती के लिए सब्सिडी का प्रविधान हो, ताकि छोटे एवं सीमांत किसान भी सक्षम बनें।
छोटे किसानों की स्थिति चिंताजनक
फैफा के महासचिव मुरली बाबू का मानना है कि खेती पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखने भी लगा है। मिट्टी की गुणवत्ता कम हो रही है। भूजल स्तर गिर रहा है। छोटे किसानों की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है।इसी प्रयास में आइसीएआर ने देशभर के 6.93 लाख किसानों तक मौसम और मिट्टी के अनुकूल खेती की तकनीक पहुंचाकर किसानों को प्रशिक्षित किया। जलवायु अनुकूल गांवों का विकास किया गया।
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भविष्य के खतरे से निपटने के लिए करने होंगे ये काम
भविष्य के खतरे से निपटने के लिए फैफा ने सरकरार से जलवायु अनुकूल बीजों के लिए शोध में निवेश बढ़ाने, परंपरागत खेती एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने, सटीक कृषि उपकरणों की उपलब्धता आदि पर फोकस बढ़ाने का आग्रह किया है। खेती को टिकाऊ, लाभदायक और पर्यावरण के अनुरूप बनाकर देश के करोड़ों किसानों की आजीविका को सुरक्षित किया जा सकता है।
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