मुर्दों को जिंदा कराकर PhotoState Shop वाले ने कर दिया PGI में 1.14 करोड़ का घोटाला

चंडीगढ़
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चंडीगढ़ स्थित देश के प्रतिष्ठ चिकित्सा संस्थानए पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च पीजीआईएमईआर में 1.14 करोड़ रुपए के बड़े घोटाले का मामला सामना आया है। इस हैरानीजनक कथित घोटाले में पीजीआई की प्राइवेट ग्रांट से जुड़े 6 लोग मरीजों को मिलने वाला पैसा निजी खातों में डलवा रहे थे। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन सीबीआई ने इस मामले को लेकर पीजीआई के छह कर्मचारियों सहित दो अन्य बहरी लोगों समेत आठ के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जानकारी अनुसार सीबीआई की जांच में सामने आया है कि यह पूरा स्कैंडल आरोपी एक फोटोकॉपी वाले की दुकान से चला रहे थे। सीबीआई ने इसमें दुकान के मालिक को भी आरोपी बनाया गया है।
एक मरीज ने इलाज के रुपए न मिलने के बाद पीजीआई प्रशासन से इसकी शिकायत की थी। इसके बाद पीजीआई प्रशासन ने प्रोफेसर डा. अरुण अग्रवाल की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की। इसके बाद केस सीबीआई के पास गया। इस सनसनीखेज मामले का कथित आरोपी फोटोकॉपी की दुकान से मरीजों को मिलने वाली ग्रांट की रकम फर्जी बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करवाते थे। साथ ही मरीजों के नाम पर मिलने वाली महंगी दवाएं अवैध रूप से बाजार में बेच दी जाती थी। घोटाले का खुलासा तब हुआ जब लाभार्थी मरीज कमलेश देवी फाइल नंबर 18796 के पति अढ़ाई लाख रुपए की स्वीकृत ग्रांट से दवा लेने प्राइवेट ग्रांट सेल पहुंचे। वहां उन्हें बताया गया कि उनकी फाइल नष्ट कर दी गई है और डिजिटल रिकॉर्ड भी डिलीट है। इसके बाद जांच में सामने आया कि करीब 22 लाख रुपए निवास यादव नामक के एक अकाउंट में ट्रांसफर किए गए हैं। जबकि इसका मरीज से कोई संबंध नहीं था। कमलेश ने पीजीआई प्रशासन से इसकी शिकायत की। इसके बाद पीजीआई प्रशासन ने मामले में एक कमेटी का गठन किया। डा. अरुण की अध्यक्षता में बनी कमेटी को कई खामियां मिलीं। इसमें एक अन्य मरीज को मिलने वाली राशि में से 90 हजार रुपए हॉस्पिटल अटेंडेंट नेहा के खाते में ट्रांसफर किए गए थे। इसके बाद और जांच हुई तो, इनमें जांच समिति को 11 ऐसे अकाउंट मिले, जिनमें फर्जी तरीके से मरीजों खुद को मरीज का परिवार बताकर 19 लाख ट्रांसफर कर दिए गए थे।
हैरानी, दो मरीजों की पहले से ही हो चुकी थी मौत
वहीं, ग्रांट सेल ने दुर्लभ बीमारियों से पीडि़त पांच मरीजों के इलाज के लिए राष्ट्रीय आरोग्य निधि और अन्य संस्थाओं से मिले 61.75 लाख रुपए में से 38 लाख 946 रुपए बिना किसी डॉक्टर की पर्ची के सीधे दवा विक्रेताओं के खातों में भेज दिए गए। हैरानी की बात यह है कि इन 5 मरीजों में से 2 की पहले ही मौत हो चुकी थी।
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