
नई दिल्ली, 1 अप्रैल 2025
हाल ही में देश की जुडिशियरी में घटी घटनाओं को लेकर सांसद राघव चड्ढा ने आज राज्य सभा में सवाल उठाए। उन्होंने राज्यसभा को दिए अपने संबोधन में देश में न्यायिक सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत के लोग अदालत को न्याय का मंदिर मानते हैं और जब कोई आम नागरिक इसकी चौखट पर जाता है, तो उसे पूरा भरोसा होता है कि उसे न्याय जरूर मिलेगा। सांसद राघव चड्ढा ने आगे कहा, “जैसे ऊपरवाले के दरबार में देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं होता, वैसे ही यह माना जाता है कि न्यायपालिका में भले ही समय लगे, लेकिन अन्याय नहीं होगा।”
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उन्होंने आगे कहा कि समय-समय पर न्यायपालिका ने इस भरोसे को और मजबूत किया है, लेकिन हाल के दिनों में कुछ घटनाओं ने देश को चिंतित कर दिया है, जिसके चलते न्यायिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी हो गया है।
सांसद राघव चड्ढा ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि जिस तरह देश में चुनाव सुधार, पुलिस सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार हुए हैं, उसी तरह न्यायपालिका में भी सुधारों की जरूरत है। उन्होंने कहा, “हमें ऐसे सुधार चाहिए जो न्यायपालिका को मजबूत करें, न कि उसे कमजोर करें।”
इस संदर्भ में उन्होंने दो अहम मुद्दों को उठाया- पहला, जजों की नियुक्ति प्रक्रिया और दूसरा, रिटायर जजों को पोस्ट रिटायरमेंट जॉब देने की परंपरा।
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न्यायाधीशों की नियुक्ति में हो पारदर्शिता
सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि समय-समय पर कोलेजियम सिस्टम की कमियां समय-समय पर सामने आई हैं। लॉ कमीशन की रिपोर्ट्स और कानूनी क्षेत्र के कई बुद्धिजीवियों ने इन खामियों का कई बार जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि शायद इसी वजह से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) जैसे कानून की जरूरत महसूस हुई थी। लेकिन अब समय आ गया है कि कोलेजियम सिस्टम खुद को सुधारे और नए सिरे से खुद को पुनर्गठित करे। चड्ढा ने कहा, “कोलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता की कमी और जनता की निगरानी का अभाव जैसे मुद्दों को लेकर इसकी आलोचना होती रही है। इन कमियों को दूर करने के लिए एक स्वतंत्र और पारदर्शी प्रक्रिया बनानी चाहिए, जिसमें जजों की नियुक्ति वरिष्ठता, योग्यता और ईमानदारी के आधार पर हो।”
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इसके लिए उन्होंने एक सुझाव भी पेश किया। चड्ढा ने कहा कि पहले वकीलों को सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने की प्रक्रिया अपारदर्शी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए दिशानिर्देश बनाए। आज उनके लिए पॉइंट-बेस्ड सिस्टम लागू किया गया है, जिसके तहत सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति होती है। जिसमें प्रैक्टिस के वर्ष, प्रो बोनो मामलों की संख्या और रिपोर्टेड जजमेंट्स के आधार पर अंक दिए जाते हैं। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि अगर कोलेजियम सिस्टम भी ऐसी ही पारदर्शी, पॉइंट-बेस्ड और योग्यता-आधारित सिस्टम अपनाए, तो जजों की नियुक्ति में जनता का भरोसा और बढ़ेगा।
कम से कम दो साल का कूलिंग-ऑफ पीरियड हो जरूरी
सांसद चड्ढा ने जजों के रिटायरमेंट के बाद की स्थिति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि एक चलन बन गया है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सरकारें प्रशासनिक या कार्यकारी पदों पर नियुक्त कर देती हैं। इससे हितों के टकराव, कार्यकारी हस्तक्षेप और रिटायरमेंट से पहले के फैसलों पर प्रभाव जैसे सवाल खड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि यह स्थिति “conflict of interest” को जन्म देती है और न्यायिक फैसलों पर सरकार का प्रभाव पड़ने की आशंका रहती है।
उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 का हवाला देते हुए कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के रिटायरमेंट के बाद उन्हें किसी भी सरकारी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह जजों के लिए भी नियम बनाया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर पूर्ण प्रतिबंध संभव न हो, तो कम से कम दो साल का अनिवार्य कूलिंग-ऑफ पीरियड लागू करना चाहिए, ताकि रिटायरमेंट के बाद दो साल तक जजों को केंद्र या राज्य सरकार किसी भी सरकारी पद पर नियुक्त न कर सके।
उन्होंने कहा कि अगर ये सुधार लागू होते हैं, तो यह भारत के न्यायिक इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा। उन्होंने आगे कहा, “हम देशवासी अदालत को मंदिर मानते हैं और जजों को न्याय की मूर्ति समझते हैं। अगर ये न्यायिक सुधार लागू होते हैं, तो जनता का न्यायपालिका पर विश्वास और गहरा होगा।”
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