
नई दिल्ली। न्यायमूर्ति बी आर गवई ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें एक समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, निवर्तमान न्यायाधीश संजीव खन्ना, अनेक केंद्रीय मंत्री, शीर्ष अदालत के न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के कई पूर्व न्यायाधीश समेत अन्य गणमान्य लोग शामिल हुए। इस अवसर पर न्यायमूर्ति गवई की पत्नी और मां सहित परिवार के अन्य सदस्य मौजूद थे। मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने अपनी मां के पैर छुए।
न्यायमूर्ति खन्ना मंगलवार यानी 13 मई को 51वें मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो गए। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर न्यायमूर्ति गवई को मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी। न्यायमूर्ति गवई को 24 मई, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। वह 23 नवंबर, 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।
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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 साल है। न्यायमूर्ति गवई का मुख्य न्यायाधीश बनना शीर्ष अदालत के इतिहास में मील का पत्थर माना जा रहा है, क्योंकि वह पूर्व मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन के बाद अनुसूचित जाति समुदाय से न्यायपालिका में शीर्ष पद पर पहुंचने वाले दूसरे शख्स हैं।
न्यायमूर्ति गवाई एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, प्रमुख अंबेडकरवादी, पूर्व सांसद और कई राज्यों के राज्यपाल रह चुके आर एस गवई के पुत्र हैं। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से बी.ए., एलएलबी की डिग्री पूरी करने के बाद 16 मार्च, 1985 को वकालत शुरू किया था। उन्होंने 1987 से 1990 तक बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्वतंत्र रूप से वकालत की। वर्ष 1990 के बाद मुख्य रूप से संवैधानिक कानून और प्रशासनिक कानून में बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के समक्ष वकालत की किया। न्यायमूर्ति गवई को 14 नवंबर, 2003 को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। वह 12 नवंबर, 2005 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने।
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न्यायमूर्ति गवई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मुंबई में मुख्य पीठ के साथ-साथ नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में सभी प्रकार के कार्यभार वाली पीठों की अध्यक्षता की। महाराष्ट्र के पूर्व महाधिवक्ता और बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश स्वर्गीय बैरिस्टर राजा एस भोंसले के साथ 1987 तक (संक्षिप्त कार्यकाल) कानूनी करियर की नींव रखी। न्यायमूर्ति गवई शीर्ष अदालत में कई संवैधानिक पीठ के निर्णयों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें विमुद्रीकरण, अनुच्छेद 370, चुनावी बॉन्ड योजना और एससी/एसटी श्रेणियों के भीतर उप वर्गीकरण शामिल हैं। उन्होंने एससी/एसटी के बीच क्रीमी लेयर शुरू करने की पुरजोर वकालत की थी।
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