
विपक्षी राज्यों की ओर से अक्सर केंद्र सरकार पर फंड देने में सौतेले व्यवहार का आरोप लगाते हुए मांग की जाती रही है कि उन पर केंद्रीय योजनाओं का बोझ न डाला जाए, इसके बजाय अतिरिक्त फंड दे दिया जाए। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण राज्यों के इस रुख से हतप्रभ हैं।
‘दैनिक जागरण’ को दिए विशेष साक्षात्कार में उन्होंने केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय वितरण पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि फंड के आवंटन को लेकर राज्यों की तरफ से जान-बूझकर ऐसा प्रचार किया जाता है ताकि लोगों को लगे कि केंद्र सरकार राज्यों के आवंटन में कमी करती है। जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है।
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राज्यों को हम पैसा दे रहे हैं ताकि वे काम करें- वित्त मंत्री
वित्त मंत्री ने कहा कि 14वें वित्त आयोग ने केंद्रीय कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने की सिफारिश की थी। इस बढ़ोतरी के साथ आयोग ने यह भी कहा था कि केंद्र चाहे तो राज्यों में केंद्रीय खर्च पर चलने वाली योजना को वह बंद कर सकता है, लेकिन हमने नहीं कीं। राज्यों को हम पैसा दे रहे हैं ताकि वे काम करें, लेकिन उन्हें सिर्फ राजनीति अच्छी लगती है।
केंद्र ने राजस्व में 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी तो बढ़ा दी
वित्त मंत्री ने कहा, सिफारिश के मुताबिक केंद्र ने राजस्व में 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी तो बढ़ा दी, लेकिन राज्यों में केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं को बंद नहीं किया। अगर हम इन योजनाओं को बंद कर देते तो हमारे (केंद्र) हाथ में पैसा बचता, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। देखा जाए तो केंद्र के पास अपने खर्च भी कम नहीं हैं। देश की रक्षा, आंतरिक सुरक्षा के साथ बंदरगाह, हाईवे, एयरपोर्ट को विकसित करने की जिम्मेदारी केंद्र के पास है। इन पर बड़े पैमाने पर खर्च होते हैं।
उन्होंने बताया कि जीएसटी में भी राज्यों की हिस्सेदारी अधिक है। मान लीजिए जीएसटी का कलेक्शन 100 रुपये हुआ तो इनमें से 50 प्रतिशत केंद्र के पास और 50 प्रतिशत राज्य के पास जाता है। फिर केंद्र के इस 50 प्रतिशत में से भी राज्यों को हिस्सेदारी मिलती है और कुल मिलाकर 72 रुपये राज्यों के पास चले जाते हैं। इसके बावजूद राज्य केंद्रीय सेस और सरचार्ज के राजस्व में भी हिस्सेदारी मांगते हैं।
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हम कोई गैरकानूनी काम कर रहे हैं- वित्त मंत्री
आगे कहा कि हम सेस लगाते हैं तो उन्हें लगता जैसे हम कोई गैरकानूनी काम कर रहे हैं, जबकि संविधान में केंद्र को सेस लगाने का अधिकार दिया गया है। सेस लगाने का कारण बताना पड़ता है कि स्वास्थ्य, शिक्षा या किस मद में खर्च के लिए सेस लगाया जा रहा है और वह पैसा उसी मद में खर्च होता है। हम यही चाहते हैं कि जनता के बीच भी सही बातों की चर्चा होनी चाहिए।
वित्तीय स्थिति देखकर ही रेवड़ी बांटने के वादे करने चाहिए
यह पूछे जाने पर कि किसी भी राज्य के लिए राजस्व का कितना प्रतिशत तक रेवड़ी बांटा जाना वित्तीय रूप से सही है, वित्त मंत्री ने कहा कि राज्यों के पास अपना वित्तीय डाटा होता है, अपनी वित्तीय स्थिति देखकर ही रेवड़ी बांटने के वादे करने चाहिए। राज्य जनता को यह भी नहीं बताते कि रेवडि़यां बांटने की वजह से वे सड़क नहीं बना रहे हैं, स्वास्थ्य सुविधा नहीं दे रहे हैं। आरोप केंद्र सरकार पर डालते हैं कि पैसे नहीं दिए जा रहे।
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