चंडीगढ़

चंडीगढ़: सिंदूर खेला के साथ दुर्गा पूजा संपन्न, कालीबाड़ी में हुआ सिंदूर उत्सव

चंडीगढ़। शारदीय नवरात्र में दुर्गा अष्टमी और सिंदूर खेला के लिए चंडीगढ़ में प्रसिद्ध है कालीबाड़ी मंदिर सेक्टर-47। कालीबाड़ी शहर का अकेला मंदिर है जहां पर दुर्गा अष्टमी की पारंपरिक विधि-विधान से पूजा होती है और दशमी के दिन सिंदूर खेला का आयोजन किया जाता है। मंदिर में दुर्गा अष्टमी और सिदूर खेला की परंपरा शहर के निर्माण के करीब 15 साल बाद शुरू हुई थी और आज भी चलती रहा है। सिदूर खेला के लिए बंगाली समुदाय की महिलाओं के साथ स्थानीय महिलाएं भी पहुंचती हैं और सिंदूर खेला में भाग लेते हुए परिवारिक सुख-शांति की कामना करती हैं।

कालीबाड़ी मंदिर का निर्माण 55साल पहले का है। चंडीगढ़ निर्माण के समय गांव के बाहर एक टीन के शेड में मां काली की मूर्ति थी, जिसे बंगाली समुदाय ने शहर के विकास की तर्ज पर बढ़ाया और इस समय मां दुर्गा की पूजा अर्चना और सबसे अहम सिदूर खेला की परंपरा को निभाते हैं। शारदीय नवरात्र में विशेष सजावट के साथ पूजा-अर्चना की जाती है।

कालीबाड़ी मंदिर के पुजारी ने बताया कि दुर्गा अष्टमी में हर धर्म और समुदाय के भक्त भागीदार बनते हैं। इसी के साथ सिंदूर खेला में भी हर सुहागिन महिला आमंत्रित होती है। कालीबाड़ी मंदिर से जब मां दुर्गा को विसर्जन के लिए ले जाया जा रहा था तो कई श्रद्धालुओं के आंखों में आंसू भी दिखाई दिए।

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चंडीगढ़ में सिंदूर खेला के साथ दुर्गा पूजा संपन्न हो गई। मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। सेक्टर-35 के बंग भवन में भी सिंदूर उत्सव का आयोजन किया गया। जहां सुहागिनों ने एक-दूसरे को सिंदुर लगाया। आयोजकों के अनुसार मां को घग्गर नदी में विसर्जित किया जाएगा।

 

दुर्गा पूजा के अवसर पर चंडीगढ़ में खूब उत्साह दिखा। पंडाल में बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने पहुंचे। विजयदशमी के दिन सेक्टर-35 के बंग भवन मां दुर्गा प्रतिमा के सामने पंडाल में सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती नजर आईं। बंगिया सांस्कृतिक सम्मिलनी के अध्यक्ष अनिंदु दास ने बताया कि सुबह मां की पूजा के बाद दर्पण विसर्जन और सिंदूर उत्सव का आयोजन हुआ। सुहागिन महिलाएं अपनी सुहाग की लंबी आयु की कामना करती हैं।

 

यह उत्सव मां दुर्गा की विदाई के दिन मनाया जाता है। बड़ी संख्या में महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाया। मां दुर्गा का विसर्जन घग्गर नदी में किया जाएगा। मां की विदाई करने का समय बहुत ही भावुक होता है। कई श्रद्धालु तो यहां रोते हुए दिखाई दिए।

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