चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि बुधवार 22 मार्च से नवरात्रि शुरू हो गए हैं, जो 30 मार्च तक चलेंगे। पहले दिन नवरात्रि की शुरुआत गजकेसरी, बुधादित्य और सिद्ध मुहूर्त में होगी। इसके बाद पूरे नौ दिनों में चार दिन सर्वार्थ सिद्धि योग रहेंगे। यह सभी योग माता की पूजा और खरीदारी करने के लिए बहुत शुभ माने गए हैं। नवरात्रि के पावन दिनों में देवी भगवती की आराधना और साधना में प्रयुक्त होने वाली प्रत्येक पूजा सामग्री का प्रतीकात्मक महत्व होता है।
स्वास्तिक- सत्य, शाश्वत, शांति, अनंतदिव्य, ऐश्वर्य, सम्पन्नता और सौंदर्य का प्रतीक माना जाने वाला यह मांगलिक चिन्ह बहुत ही शुभ है। इसी कारण किसी भी शुभ कार्य के शुभारंभ से पहले स्वास्तिक चिन्ह बनाकर पूजा करने का विधान है।
महत्व- इसमें सारे विघ्नों को हरने और अंमगल दूर करने की शक्ति निहित है। जो इसकी प्रतिष्ठा किए बिना मांगलिक कार्य करता है। वह कार्य निर्विघ्न सफल नहीं होता।
कलश- धर्म शास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों, देवी-देवताओं और तीर्थों का वास होता है। इसलिए नवरात्रि पूजा में घट स्थापना का सर्वाधिक महत्व है।
महत्व- नवरात्रि में विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य आता है।
ज्वारे- नवरात्रि में कलश स्थापना के साथ ही जौ बोए जाते हैं बिना इसके माता की पूजा अधूरी मानी जाती है। जौ समृद्धि, शांति, उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जौ उगने की गुणवत्ता से भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
महत्व- मान्यता है कि अगर जौ तेज़ी से बढ़ते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है,घर की नेगेटिव एनर्जी दूर होती है।