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ब्लड क्लॉट होने से जा सकती है जान,बार-बार होने वाले ब्लड क्लॉटिंग का इस तकनीक से हुआ सफल इलाज

हिमाचल प्रदेश के मनाली के एक 44 वर्षीय व्यक्ति को हाल ही में आइवी अस्पताल, मोहाली में बार-बार बड़े पैमाने पर होने वाले ब्लड क्लॉटिंग के लिए नवीनतम एंडोवस्कुलर तकनीक के साथ सफलतापूर्वक इलाज करने के बाद नया जीवन मिला है।

आइवी में कार्डियो वैस्कुलर एंडोवस्कुलर एंड थोरैसिक सर्जरी के प्रमुख डॉ. हरिंदर सिंह बेदी ने कहा कि सुरजीत सिंह (नेम चेंज) एक गंभीर स्थिति में था क्योंकि उसके पैर में एक बड़ा ब्लड क्लॉटिंग विकसित हो गया था, जो फेफड़े में चला गया था और जिससे फेफड़ा इंफार्कट हो गया था।उन्होंने आगे बताया कि रोगी के फेफड़ों से गंभीर रक्तस्राव हो रहा था जिसे मेडिकल थेरेपी से नियंत्रित नहीं किया जा सकता था।

जांच करने पर रोगी के पैरों में ब्लड क्लॉटिंग के साथ खून के थक्का जमने से जुड़ी स्थिति डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) पाई गई, जो रोगी के फेफड़ों में प्रवेश कर गया था, जिससे पल्मोनरी एम्बोलिज्म (पीई) और इंफार्कट हो गया था।

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रोगी के फेफड़ों का कार्य बहुत कम था और आगे कोई भी पल्मोनरी एम्बोलिज्म संभावित रूप से घातक होता। डॉ बेदी ने कहा कि असाध्य रक्तस्राव को देखते हुए रोगी कैथेटर निर्देशित थ्रोम्बोलिसिस (सीडीटी) नामक सामान्य प्रक्रिया से नहीं गुजर सकता था । एकमात्र विकल्प पेनम्ब्रा इंडिगो कैथेटर नामक तकनीक के साथ क्लॉट को हटाना था। साथ ही फेफड़ों में और ब्लड क्लॉटिंग को पहुंचने से रोकने के लिए, IVC फिल्टर का उपयोग किया गया।

डॉ. बेदी के अनुसार डीवीटी (ब्लड क्लॉटिंग)बीमारी भारत में काफी आम है, क्योंकि हमारी अधिकांश आबादी खड़े होकर काम करती है, जिससे नसों पर दबाव पड़ता है, डॉ. बेदी ने कहा।

डॉ बेदी ने कहा कि मोटे और बुजुर्गों को डीवीटी का अधिक खतरा होता है, जबकि गर्भनिरोधक गोलियां लेने वाली महिलाओं में ब्लड क्लॉटिंग बनने की संभावना 10 गुना अधिक होती हैं।

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