मध्य प्रदेश

MP: दोहरे हत्याकांड में आजीवन कारावास से दण्डित 11 आरोपियों को मिली राहत

इटारसी में 2010 में हुए दोहरे हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा से दंडित 11 आरोपियों को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने राहत दी है। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने पुलिस की जांच पर सवालिया निशान उठाएं हैं।

इटारसी में 2010 में हुए दोहरे हत्याकांड मामले में आजीवन कारावास से दण्डित 11 आरोपियों को हाईकोर्ट से राहत मिली है। हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस अमरनाथ केसरवानी ने संदेह का लाभ देते हुए सेशन कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया है। अभियोजन के अनुसार 8 फरवरी 2010 को रात 11:30 बजे मैरिज हॉल के पास आरोपी शंकर मिहानी और उसके साथियों ने सचिन तिवारी तथा मुन्नू उर्फ मृत्युजंय उपाध्याय को रोक अपराधिक मामले में आरोपी अंशुल के समर्थन में हलफनामा देने दवाब बनाया। मुन्नू ने विरोध किया तो, उन्होंने मारपीट शुरू कर दी और उन्हें लेकर आजाद पंजा रेल्वे क्रॉसिंग के पास ले गये। आरोपियों ने धारदार हथियार से हमला कर दोनों आरोपियों की हत्या कर दी।

याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क प्रस्तुत किए गए थे पुलिस के अनुसार झगड़ा मैरिज हॉल के पास हुआ था, जिसका प्रत्यक्षदर्शी गवाह देवेन्द्र सिंह राजपूत था। गवाह ने अपने बयान में कहा कि दोनों व्यक्तियों की मौत का समाचार उसने न्यूज पेपर में पढ़ा था। पुलिस ने उसके बयान अपनी मर्जी के अनुसार दर्ज किये थे। धारा 164 के बयान भी उसने पुलिस के कहने पर दिये थे। बयान देने के दौरान पुलिस कर्मी मजिस्ट्रेट कोर्ट के दरवाजे में खड़े थे और बयान सुन रहे थे।

पुलिस के अनुसार आजाद पंजा चौक स्थित रेलवे क्रॉसिंग के पास गुल्लू ने आरोपियों को हत्या करते हुए देखा था। गुल्लू विवाह में घोड़ी लेकर मेहरागांव से सोनासपानी गया था। लौटते समय रात लगभग 11:30 बजे वारदात को देखा था। इसके अलावा उसने यह भी आरोप लगाया था कि बयान बदलने के लिए आरोपी शंकर के भाई दयाल ने उसे रिश्वत दी थी। प्रथम विवेचना अधिकारी ने अपने बयान में कहा कि मेहरागांव से सोनासपानी मार्ग में आजाद पंजा चौक नहीं आता है। आजाद पंजा चौक में आवागमन बना रहा है, अन्य किसी स्वतंत्र व्यक्ति के साक्ष्य नहीं लिये गये।

याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि मृतक के दोस्त ने अपने बयान में कहा कि उसने रात 11:15 बजे मोटर साईकिल से दोनों को घर छोड़ा था। इसके अलावा मृतक सचिन की मां ने स्वीकार किया है कि भोजन करने के बाद रात 11:45 घर से निकला था। इसके अलावा एक अन्य दोस्त ने यह स्वीकार किया है कि रात लगभग 11:45 बजे सचिन उसके पास आया था और घबराया हुआ था। हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस अमर नाथ केसरवानी ने पाया कि 27 फरवरी 2010 तक आरोपियों के नाम उजागर नहीं हुए थे।

प्रथम विवेचना अधिकारियों से प्रकरण विवेचना के लिए दूसरे थाना प्रभारी को सौंपा गया था। विवेचना मिलने के बाद उक्त अधिकारी ने प्रत्यक्षदर्शी साक्षी गुल्लू के बयान 24 फरवरी को दर्ज किये। इतने दिनों तक प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के बयान दर्ज नहीं किये गये। इसके अलावा प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के खिलाफ 32 आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं। प्रत्यक्षदर्शी साक्षी ने जिस मार्ग से लौटने का उल्लेख किया, उसमें घटना स्थल नहीं पड़ता है। गवाही बदलने के लिए रिश्वत देने का आरोप भी न्यायालय में साबित नहीं हुआ है।

पुलिस के अनुसार मृतक के जूते व खून लगी मिट्टी श्मशान घाट के पास मिली थी। पुलिस ने इस संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया है कि श्मशान घाट से आधा किलोमीटर दूर मृतकों के शव को कैसे लाया गया। युगलपीठ ने संदेह का लाभ देते हुए सेशन कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।

Sapna

Sapna Yadav News Writer Daily Base News Post Agency Call - 9411668535, 8299060547, 8745005122 SRN Info Soft Technology www.srninfosoft.com

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