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राजभवन पहुंचे कांग्रेस के आदिवासी विधायक तो राज्यपाल ने भी 10 सवालों की सूची उन्हें पकड़ा दी

राजभवन पहुंचे कांग्रेस के आदिवासी विधायक तो राज्यपाल ने भी

राजभवन आरक्षण विधेयकों पर सरकार और राजभवन के बीच मचे घमासान के बीच कांग्रेस के आदिवासी विधायकों का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला है। मुलाकात के दौरान विधायकों ने आरक्षण विधेयकों पर हस्ताक्षर करने की मांग की।

जवाब में राज्यपाल अनुसुइया उइके ने 10 सवालों की सूची उन्हें भी पकड़ा दी। कहा, इनका जवाब सरकार से मिल जाए तो हस्ताक्षर कल हो जाएगा। राज्यपाल ये सवाल 14 दिसम्बर को ही सरकार को भेज चुकी हैं।

आदिवासी विकास और स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम की अगुवाई में कांग्रेस के आदिवासी विधायकों का दल गुरुवार शाम राजभवन पहुंचा था।

इसमें अधिकतर विधायक सरगुजा संभाग और मध्य क्षेत्र के थे। बस्तर क्षेत्र से केवल शिशुपाल शोरी और सावित्री मंडावी ही प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहे। यहां करीब एक घंटे तक उनकी राज्यपाल अनुसुइया उइके से बातचीत हुई।

बैठक के बाद पत्रकारों से चर्चा में मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने बताया, कांग्रेस के सभी आदिवासी विधायक राज्यपाल से मिलकर आग्रह किया। इसकी वजह से बहुत सी नियुक्तियां रुकी हुई हैं। कॉलेजों में प्रवेश रुक गया है। इस बात को वे समझती भी हैं। इस बात पर चर्चा हुआ वे इसके प्रति संवेदनशील हैं।

डॉ. टेकाम ने कहा, वे भी चाहती हैं कि दस्तखत हो जाए। इसमें इतना देरी लग रहा है इसमें सरकार से उन्होंने कुछ जानकारी मांगी है। उन्होंने कहा, सरकार की ओर से उन्हें जानकारी मिल जाए वे शुक्रवार को दस्तखत को तैयार हैं। हम लोगों की जो बातें हुई उसमें उन्होंने प्रदेश के लोगों के प्रति सहानुभूति जताई हैं।

डॉ. टेकाम का कहना था, राज्यपाल ने विधेयकों पर हस्ताक्षर करने से इनकार नहीं किया है। उनका कहना है कि लीगल एडवाइज ले रही हूं और कुछ जानकारियां सरकार से मांगी है। जैसे ही मिलता है वे दस्तखत करने को तैयार हैं। उनका कहना था कि जैसे ही जानकारी आ जाए वे दस्तखत कर देंगी।

राष्ट्रपति की सहमति भी ले आई हैं ऐसा दावा

संसदीय सचिव शिशुपाल शोरी ने कहा, राज्यपाल ने खुद ही बताया है कि उन्होंने इस संबंध में राष्ट्रपति से बात की है। राष्ट्रपति भी इस बात से चिंतित हैं। ऐसे में राज्यपाल जो निर्णय लेंगी वे उसमें साथ हैं। विधेयकों पर हस्ताक्षर के बारे में उनका रटा रटाया जवाब है कि जो 10 बिंदुओं पर जानकारी मांगी है, उसका जवाब आ जाएगा तो मैं दस्तखत कर दूंगी।

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राज्यपाल ने सरकार से ये जानकारियां मांगी हैं

  1. क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण।
  2. 1992 में आये इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50% से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है।
  3. उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जा रही है।
  4. सरकार यह भी बताये कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं।
  5. आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50% से अधिक आरक्षण का उदाहरण रखा गया था। उन तीनों राज्यों ने तो आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करे।
  6. क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट भी मांगी है।
  7. विधेयक के लिए विधि विभाग का सरकार को मिली सलाह की जानकारी मांगी गई है। राजभवन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए बने कानून में सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। तर्क है कि उसके लिए अलग विधेयक पारित किया जाना चाहिए था।
  8. अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति सरकारी सेवाओं में चयनित क्यों नहीं हो पा रहे हैं।
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सरकार ने आरक्षण का आधार अनुसूचित जाति और जनजाति के दावों को बताया है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 335 कहता है कि सरकारी सेवाओं में नियुक्तियां करते समय अनुसूचित जाति और जनजाति समाज के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाये रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा। सरकार यह बताये कि इतना आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता पर क्या असर पड़ेगा इसका कहीं कोई सर्वे कराया गया है?

उच्च न्यायालय के आदेश से प्रदेश के आरक्षण खत्म है

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 19 सितम्बर को आये एक फैसले से छत्तीसगढ़ में आरक्षण देने के लिए बने कानून की संबंधित धाराओं को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया गया है। इसी के साथ प्रदेश की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण खत्म हो चुका है।

इस स्थिति से बचने के लिए सरकार ने एक-दो दिसम्बर को विधानसभा का सत्र बुलाया। दो दिसम्बर को नये आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कर राज्यपाल को हस्ताक्षर के लिए भेजा गया। इस विधेयक में अनुसूचित जाति के लिए 13%, अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

जवाब देने की तैयारी में सरकार, मुख्यमंत्री भी कह चुके

मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा, राज्यपाल ने जो जानकारियां मांगी है वह दे दी जाएंगी। मुख्यमंत्री भी यह जानकारी भेजने की बात कह चुके हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गुरुवार सुबह कहा था, यह पूछना उनके (राज्यपाल के) अधिकार क्षेत्र के बाहर है, लेकिन वे उसी पर अड़ी हुई हैं तो हम उसका जवाब भेज देंगे।

भेजने में कितना देर लगता है, लेकिन वह उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। जो चीज विधानसभा से पारित हो चुका है, उसमें विभाग थोड़ी न जवाब देगा। लेकिन अगर वे अपनी हठधर्मिता पर अड़ी हुई है और नियम से बाहर जाकर काम करना चाहती है तो हमें कोई तकलीफ नहीं है। मुख्यमंत्री ने कहा, प्रदेश के हित में बच्चों के भविष्य को देखते हुए हम किसी प्रकार का अड़ंगा नहीं होने देंगे। वह चाहती है कि उनकी जिद पूरी हो तो हम भिजवा देंगे।

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